समाज के संगठन ही बन रहे समाज के विघटन का कारण

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हमारा प्रजापती कुम्भकार समाज आज हर क्षेत्र में विकास की और अग्रसर है। समाज में सामाजिक गतिविधियां अपने चरम पर है कोई सप्ताह ऐसा नही जाता जहां भारत भर में सामाजिक बैठकें , प्रतिभा सम्मान समारोह या सामूहिक विवाह समारोहों के समाचार नही आते हों।
उसके बावजूद भी समाज संगठित हो गया है या समाज के सन्गठन इस और कोई कदम उठा रहे है कहना मुश्किल है। क्योंकि ये जितने भी समारोह या बैठके होती है उनमें मुख्य रोल स्थानीय समाज का होता है न कि सङ्गठनों का।
हालाँकि उनपर बेनर सङ्गठनों के ही नज़र आते है जो कि दरअसल बेनर ही होते है।
ऐसा बहुत मुद्दों पर समय समय पर साबित होता रहा है।
मेरा ऐसा कहने के पीछे पर्याप्त कारण है
अकसर हम देखते है कि किसी भी सामाजिक मुद्दे , समाज के किसी व्यक्ति , परिवार या बहन बेटी के साथ कोई अत्याचार या ज्यादती होती है और यदि उसे एक संगठन उठाता है तो दूसरे सारे सङ्गठनों के लिए वह मुद्दा समाज का नही रह कर उस सन्गठन का रह जाता है। जो दुर्भाग्य पूर्ण है।
राजनैतिक पार्टियों के विचार अलग अलग होते है कोई गांधी की विचारधारा पर चलते है तो कोई सरदार पटेल के कोई दीनदयाल उपाध्याय के तो कोई लोहिया के और कोई लेनिन के तो कोई अम्बेडकर के।इसलिए उनके विचारों में समानता नही हो सकती और कहीं कहीं विरोधाभास भी होता है। व्यापार व्यक्तिगत लाभ के लिए होता है इसलिए उसमे प्रतिस्पर्धा का होना लाज़िम है। पर सामाजिक सङ्गठनों का उद्देश्य तो एक ही होता है एक ही लक्ष्य होता है और वह होता है समाज का सर्वांगीण विकास एवम समाज के हितों की रक्षा करना। तो फिर किसी भी सामाजिक मुद्दे को सब संगठन मिल कर उठाने या किसी अत्याचार या ज्यादती का सब सन्गठन मिलकर विरोध क्यों नही करते। ऐसी परिस्थितियों में सन्गठन बन्ट  कर यही साबित करते है कि उन्हें अपने अपने श्रेय की पड़ी है न कि समाज की।
आज अधिकतर कार्यकर्मों से सिर्फ फोटोग्राफ निकलते है न कि कोई सन्देश। क्या समाज के हज़ारों लाखों रूपये हम सिर्फ अपने मान सम्मान करवाने और फोटुयें चमकाने के लिए समारोह आयोजित कर स्वाहा कर रहे है।
दूसरी तरफ हर दिन सङ्गठनों में से सन्गठन पैदा हो रहे है जिसका कारण व्यक्तियों की अतिमहत्वाकांक्षा है जिसकी भी महत्वाकांक्षा पूरी नही हो वो संगठन से अलग होकर अपना अलग सन्गठन बना लेता है और उनको उनके अनुरूप ही महत्वाकांक्षी लोगों की फौज मिल जाती है।
हमने भी राष्ट्रिय स्तर पर बुद्धिजिवियों का एक संगठन बनाया और नाम दिया प्रजापति हीरोज
जिसका नाम आज भारतीय प्रजापती हीरोज आर्गेनाईजेशन (पंजीकृत) है। और इसका उदगम् ना किसी संगठन से अलग होकर हुआ और न ही किसी संगठन से किसी सदस्य को पद का लालच देकर तोड़ कर बनाया गया है और न किसी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए हुआ। इस संगठन में इस तरह के समाज के भाई बहनों को एकत्रित किया गया जिन्होंने सामाजिक सङ्गठनों की कार्यप्रणालियों के चलते सङ्गठनों से दूरी बना रखी थी । फिर भी बहुत सावधानी के बावजूद यहां भी कुछ अतिमहत्वाकांक्षी लोग समय समय पर जुड़ ही जाते है और थोड़ा सा नाम और पहचान बना कर अपना रंग दिखाने की कोशिष करने लगते है पर हीरोज सिद्धांतों के आधार पर बना और उन्ही के आधार पर चलेगा। किसी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति का हथियार हीरोज कभी नही बनेगा।
  आफ्टर आल कहने का तात्पर्य इतना ही है कि सङ्गठनों को अपने नाम के लिए काम नही करते हुए समाज के सर्वांगीण विकास व समाज के हितों की रक्षा के लिए मेरा सन्गठन उसका सन्गठन से ऊपर उठ कर समाज हित के किसी मुद्दे पर एक दूसरे संगठन के साथ सामंजस्य के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए।
  वरना जागरूक होता युवा समाज आपको ज्यादा दिन नही ढो सकेगा।
BE AWARE
TAKE CARE

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4 comments

  1. आपका मार्गदर्शन रहा तो सब एक राह पर आ जायँगे

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