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दिमाग की गुलामी देह की गुलामी से चार कदम आगे चलकर आती है. 

22:09

स्वाधीनता का रास्ता हमेशा सरल नहीं होता. बावजूद इसके कि कल्याण राज्य की अवधारणा मानवमात्र के लिए अधिकतम स्वाधीनता के विचार पर टिकी है, सभ्यताकरण की कोशिश में मानवीय स्वाधीनता पर निरंतर हमले होते रहे हैं. मनुष्य ने खेती करना सीखा. एक जगह टिककर खेती करते–करते एक समय ऐसा आया जब समाज के संसाधन मुट्ठी–भर आदमियों के हाथों में सिमट गए और बाकी लोक उनकी इच्छा के अनुसार कार्य करने को विवश हो गए. धीरे–धीरे भूमि और अन्य संसाधनों पर कब्जा जमाकर एक वर्ग दूसरे वर्ग का मालिक बन बैठा. खुद को सर्वेसर्वा बताकर वह लोगों से मन चाहा काम लेने लगा. जनसाधारण का जीवन संघर्ष और त्रासदियों से भरा था. सो सबसे पहले धर्माचार्य मदद के लिए आगे आया. संघर्ष से थके–हारे लोगों का आवाह्न करते हुए उसने कहा—‘तुम मुझे दान दो. मैं तुम्हें संघर्ष से सदा के लिए मुक्ति दिलाऊंगा.’ लोग दान देने लगे.हालात ज्यों की त्यों रहे. परेशान लोग धर्माचार्य से मुक्ति के बारे में पूछते तो उसका एक ही जवाब होता—‘मसीहा का इंतजार करो. अपनी संतान को संकट में देखकर वह मदद के जरूर आगे आएगा.’ लोगों ने इंतजार किया. कुछ दिनों बाद लोगों की निराशा बढ़ने लगी. तब तलवार लिए एक व्यक्ति आगे आया, बोला—‘मैं तुम्हारा राजा हूं. तुम मुझे कर दो. मैं तुम्हें दुश्मनों से बचाऊंगा.’ लोगों ने उसे कर देना शुरू कर दिया. थोड़े दिन बाद सैनिक ने पुरोहित से दोस्ती कर ली.प्रजा वैसी की वैसी ही रही. फिर एक दिन एक और व्यक्ति आया, ‘मैं व्यापारी हूं. तुम मेरे लिए काम करो. मैं तुम्हें सारे कष्टों से मुक्ति दिलाऊंगा.’ हताश लोगों ने दिल और दिमाग दोनों व्यापारी के यहां गिरवी रख दिए. बाद में पुरोहित, राजा और व्यापारी एक साथ मिल गए. पुरोहित राजा और व्यापारी के भले के लिए पूजा करने लगा. राजा व्यापारी के धन की देखभाली में जुट गया. और व्यापारी उसका व्यापार दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था. राजा उसके धन की रखवाली करता, पुरोहित उसके लिए हवा बनाने का काम करता. जनता उन तीनों की गुलाम बनकर रह गई.

कहानी से पता चलता है कि दिमाग की गुलामी देह की गुलामी से चार कदम आगे चलकर आती है. मनुष्य पहले मानसिक रूप में दास बनता है, बाद में दैहिक रूप में. ऊपर के उदाहरण में मनुष्य के समक्ष एक के बाद एक स्थितियां जन्म लेती हैं. हर बार उसके विवेक पर कोई और कब्ज़ा करता चला जाता है.

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1 comments

  1. बहुत ही दमदार लाईनें श्रीमान जी इनसे हमें सिखने को बहुत कुछ मिला
    जय दक्ष प्रजापति

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