सामाजिक समस्याओं को मिटाने के लिए उन पर खुली बहस जरूरी है
03:03बील्ली के आते ही कबूतर अपनी आँखें बंद कर लेता है, उसे लगता है बिल्ली नज़र नहीं आएगी तो बला टल जाएगी| बिल्ली भी मस्त उसे पता है की वो कबूतर के पास जाएगी तो कबूतर आँखें बंद कर लेगा| इस तरह दोनो का काम आसान हो जाता है| कबूतर का डर हमेशा के लिये मिट जाता है, और बिल्ली के खाने का इंतेज़ाम हो जाता है|
कुछ ऐसी ही हालत हमारे समाज की है। हम समाज की बुराइयों और समस्याओं से आँखे मूँद कर उनके स्वतः खत्म होने का इंतजार करते है।हम सामाजिक बुराइयों या समस्याओं पर इस लिए खुल कर चर्चा करने से डरते है कि दूसरे समाज हमारा मजाक उड़ाएगा, हम असंगठित दिखेंगे, हमारी आपसी रार उजागर हो जायेगी, हम गवार लगेंगे, समाज में दरार पड़ जायेगी, हमारे सामाजिक व राजनैतिक नेता हमसे नाराज हो जायेंगे आदि।
पर क्या सही में समाज की बुराइयों और समस्याओंं से आँखे बंद कर लेने या मुंह फेर लेने से वे खत्म हो जायेगी।
शायद नही।
उनके चलते हमारी पहचान, हमारी संस्कृति , हमारा अस्तित्व और इतिहास जरूर खत्म हो जायेगा।
अगर हमें समाज की बुराइयों और समस्याओं का समाधान करना है तो हमें जम कर इसका समुद्र मंथन करना होगा। जितना विष निकलता है निकलना होगा और उसे हमे पीना भी होगा यदि आने वाली पीढ़ियों को सुखी देखना और अमृत पान करवाना है तो।
साथियों समाज के अंदर समाज तोड़क लोगों की कुचेस्टाओं का मुद्दा हो या समाज के बाहर हो रहे सामाजिक व राजनैतिक शोषण का मुद्दा हमे सब पर हमारे इस क्लोज ग्रुप के माध्यम से खुली चर्चा करनी होगी और कैसे हम इनका मुकाबला करें इसपर खुल कर रणनीति बनानी होगी।
वरना डर तो खत्म नही होगा डरने वाला ही खत्म हो जायेगा।
खुद पर विश्वास करो,
सम्भावनाओं को सम्भव करो।
दुनियाँ मनदि जोरां नूँ,
लख लानत कमजोरां नूँ।
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