बिना मृण कला के संरक्षण कैसे जलेगा माटी दीप

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माटी का यह दीप सनातन, आलोकित आँगन-आँगन ।
दीपों की पातों से सज्जित, घर-घर प्रकाश का हो अभिनन्दन।।

BPHO परि्वार की और से सभी देश वासियों को दीपावली के ज्योति पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

सम्पूर्ण भारत वर्ष में बड़े से बड़े नेता से लेकर प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोसल मीडिया तक और समाज सेवी सङ्गठनों से लेकर संत महात्माओं व स्कूल कॉलेजों तक दीपावली के त्यौहार पर मिट्टी के

दीप जलाने को लेकर बड़ी जागरूकता नजर आ रही है।

कोई स्वदेशी के नाम पर , कोई संस्कृति के नाम पर तो कोई कला के नाम पर मिट्टी के दीप जलाने का आव्हान कर रहा है।

 #पत्रिका व #जागरण समाचार पत्र समूहों व कुछ सामाजिक सङ्गठनों ने देश भर में मिशन चला कर मिट्टी के दीप जला कर दीपावली का त्यौहार मनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

 मिट्टी के दीप का सिर्फ धार्मिक , सांस्कृतिक महत्व मात्र नही हो कर दीप जीवन जीने का सन्देश है। मिट्टी से बनने वाला दीप कच्ची मिट्टी को आकार दे कर जीवन को उच्च आदर्शों में ढालने की प्रेरणा देता है। उसमें ज्योति के रूप में जलने वाली बाती सफेद रुई से बनी शांति और सोहाद्र की प्रतीक है तो लौ तमस से उजास की और ले जाने का सन्देश देती है तो उसमें डाला जाने वाला तेल पात्र के अनुसार समाने की तरलता का उपदेश देता है।

 ■ यह तो हुयी दिये की महिमा।

पर दिये जलाने का आव्हान करने वाले देश के नेताओं , देश के सभी प्रकार के मीडिया और सभी सङ्गठनों, बाबाओं, स्वामियों व संस्थाओं को इस दिये को बनाने वाले मृण शिल्पकार कुम्भकार की और उसकी कला की मौजूदा स्थिति का भी कुछ ख्याल है ?

 जब मिट्टी के दिये बनाने वाले शिल्पकार ही नही रहेंगे तो यह कला कहाँ से जीवित रह पायेगी। कहाँ से आएगा मिटटी का दिया , कहाँ से आएगा कलश। आज जहां भी गाँवों में कुंभकारों को मिट्टी उठाने की जमीनें आवंटित थी सब पर भूमाफियाओं ने कब्जे कर लिए है। जिसके चलते उन्हें जहां तहां से मिट्टी ढुलाई करके लानी पड़ती है जिससे उत्पादन लागत ऊँची पड़ जाती है और उसकी तुलना में विक्रय मूल्य नही मिल पाता । इसी तरह बर्तन पकाने का ईंधन भी महंगा मिलता है और मजदूरी से भी कम मेहनत का पारिश्रमिक बैठने की वजह से कोई यह कार्य करना पसंद नही करता।

 और  सबसे महत्व पूर्ण कारण है वो यह कि अन्य कलाओं की तरह मृण कला के शिल्पी को यथोचित सम्मान नही मिलता जिससे पढ़ी लिखी पीढ़ी इससे घृणा करने लगी है और वो इस पेशे को छोड़ने की वकालत करती है।

★★★

क्या है उपाय

मिट्टी कला भी अन्य कलाओं की तरह एक कला तो है ही बल्कि साथ ही भारत वर्ष् के एक बहुत बड़े जाती समूह का पारम्परिक पेशा व जीवनयापन का जरिया भी है।

इसलिए भारत की सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि इसके संरक्षण के लिए यथोचित कदम उठाये। भारत के अधिकांश राज्यों में माटिकला बोर्ड गठित है पर न बोर्ड अध्यक्षों की नियमित नियुक्ति होती है और हो भी जाये तो मात्र खाना पूर्ति होती है। ना उनके पास कोई वितीय साधन होते है न कला के संरक्षण की कोई नीतियां।

 जब माटी कला बोर्ड का प्रावधान है तो इसका गठन कुछ ही राज्यों में क्यों किया जाता है।

  जिन राज्यों में बोर्ड गठित है उनमें बोर्ड अध्यक्षों की नियुक्तियां सरकार के गठन के साथ ही हो।

  माटी कला के संरक्षण के लिए केंद्रीय माटी कला बोर्ड का गठन किया जा कर राष्ट्रिय स्तर

पर इस कला के आधुनिकरण के प्रयास किये जाने चाहिए।

  वरना सारे आव्हान , सारी मन की बाते बेमानी है।

#PMO_India

#Human_resource_ministry_of_india

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